श्री मार्कण्डेय महादेव का दर्शन
कैसे हो यारा ?
आज आपको वाराणसी से 32 किमी0 दूर गंगा-गोमती के संगम तट पर स्थित भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिर श्री मार्कण्डेय महादेव की यात्रा से सम्बन्धित अपने अनुभव बताना चाहेंगे।
ऐसी मान्यता है कि जिनके पुत्र नहीं हैं वो श्री मार्कण्डेय महादेव जी के मंदिर में विधि विधान से “हरिवंश पुराण” और “पुत्र गोपाल मंत्र” का श्रवण, पाठ व जाप करके अपनी ये मनोकामना पूरी कर सकते हैं। यहां आयुगत दोष के निवारण, अकाल मृत्यु के संकट को दूर करने और दीर्घायु होने की कामना के लिए भी लोग “महामृत्युंजय” का पाठ करवाते हैं। यहां “रुद्राभिषेक” करवाने का भी अपना एक विशेष महत्व है।
वैसे तो यहां देश के कोने-कोने से लोग पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद लेने आते हैं। लेकिन पूर्वांचल के लोग प्राचीन काल से ही श्री मार्कण्डेय महादेव जी का आशीर्वाद प्राप्त करके सौभाग्यशाली होते रहे हैं।
वाराणसी से गाजीपुर राजमार्ग पर चौबेपुर के कैथी गांव में स्थित यह मंदिर रजवारी रेलवे स्टेशन से करीब वह 4.5 किमी0 और औड़िहार रेलवे स्टेशन से करीब 12 किमी0 दूर है। इसे काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी भी कहते हैं।
श्री मार्कंडेय जी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार शृंग ऋषि सीतापुर के पास नैमिषारण्य में तपस्या कर रहे थे। कोई संतान न होने का कारण उन्हें लोगों का झेलना पड़ता था। क्योंकि वंश परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र का होना आवश्यक है।
पुत्र प्राप्ति हेतु वहां जाकर घोर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने कहा की इस कष्ट को भगवान महादेव ही दूर कर सकते हैं। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए वह गंगा गोमती के संगम तट पर तपस्या करने आ गए।
प्राचीन काल से ही गंगा-गोमती के संगम परिस्थिति कैंची गांव अध्यात्मिक उर्जा से परिपूर्ण रहा है। उन की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनसे पूछा कि तुम्हें अल्पायु वाला बुद्धिमान बालक चाहिए या लंबी आयु का सामान्य बालक। उन्होंने बुद्धिमान बालक के लिए प्रार्थना की। जिसके फलस्वरूप उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसकी उम्र सिर्फ 12 साल ही थी। उनका नाम उन्होंने मारकंडे रखा जो छोटी उम्र में ही सारी विद्याएं सीख गए।
उनकी आयु समाप्त होने के बाद जब यमराज उनके प्राण लेने आए तो उन्होंने देखा कि वह अपने पिता के साथ भगवान शंकर की पूजा कर रहे थे। यमराज को देखते ही दोनों लोग रक्षा करने की विनती करने लगे। लेकिन यमराज उन्हें ले जाने के लिए उनके ऊपर रस्सी फेंकी।
अपने परम भक्त के साथ यमराज के इस दुर्व्यवहार से भगवान शंकर कुपित हो गए। यमराज से अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए उन्होंने मारकंडे जी को वरदान दिया कि उनकी उम्र हमेशा 12 साल ही रहेगी, कभी बढ़ेंगे नहीं, अमर रहेंगे। साथ में उन्होंने यह भी वर दिया कि यहां पर उनकी पूजा करने से पहले मार्कंडेय जी का पूजा करना अनिवार्य होगा।
दर्शन की योजना
श्री मार्कण्डेय महाराज जी के दर्शन की योजना अचानक ही बन गई। 15 सितंबर 2020 को अपने मित्र चंद्रभाल का जन्मदिन मनाने प्रदीप, पारस और टीएन के साथ हम लोग कुशीनगर गए हुए थे। वापस लौटते वक्त पारस ने श्री मार्कण्डेय जी जाकर दो-चार दिनों के लिए भक्ति-भाव से रहने, भजन-कीर्तन करने का प्रस्ताव रखा। वो अक्सर वहां जाता रहता है।
कोरोना काल में उसके कपड़े की दुकान अच्छी नहीं चल रही थी इसलिए उसको श्री मार्कण्डेय जी का आशीर्वाद लेने का विचार आया। अंत में यह निश्चित हुआ कि हम लोग वहां अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में सिर्फ एक दिन रुक कर वापस आ जाएंगे।
यात्रा की शुरुआत
9 अक्टूबर को हम लोग टीएन, पारस, चंद्रभाल और नवीन जी सुबह 7:00 बजे मार्कंडेय जी का दर्शन करने निकल पड़े। हमें उसी दिन वापस भी लौटना था। क्योंकि चंद्रभाल को अपना नया राइस मिल तैयार करके दशहरे के दिन से उसे शुरू करना था। उसके पास बिल्कुल भी समय नहीं था। लेकिन शुभ कार्य शुरू करने से पहले वह भी श्री मार्कण्डेय जी महाराज का आशीर्वाद निश्चित रूप से लेना चाहता था।
कुछ देर यात्रा करने के बाद हम लोग उभांव तिराहे पर एक प्रसिद्ध चाय की दुकान पर कुल्हड़ की चाय पीने के लिए रुके। चाय पीने के साथ ही प्रदीप की फोन पर खिंचाई शुरू हो गई। किसी प्रोजेक्ट के कारण वह हमारे साथ नहीं नहीं आ पाया था। बार-बार फोन करने के कारण उसने अपना फोन ही स्विच ऑफ कर दिया।
कुछ दूर चलने के बाद मुझे अपने एक घनिष्ठ मित्र की याद आई। अपनी जगह मैं उसे भेजना चाहता था। क्योंकि कई सालों से वह पुत्र प्राप्ति के सौभाग्य से वंचित था।
जाने से पहले मैंने चंद्रभाल इस बारे में बात की थी। लेकिन उसने अपने एक अन्य मित्र नवीन जी को साथ चलने के लिए पहले ही हामी भर दी थी। एक दूसरा कारण यह भी था कि वहां श्री मार्कंडेय महादेव जी की विशेष अनुकम्पा पाने के लिए पति पत्नी दोनों को साथ जाकर एक विशेष अनुष्ठान भी करनी पड़ती है।
नवीन जी को जैसे ही हमारे ही इस योजना के बारे में पता चला वह भी छुट्टी लेकर साथ जाने के लिए तैयार हो गए। क्योंकि उनके दोनों पुत्र इन्ही की कृपा से हुए हैं। इसलिए वो लोग हमेशा उनके दर्शन के लिए आतुर रहते हैं।
मंदिर जाने से पहले गंगा स्नान
आधा रास्ता गपशप, हंसी-मजाक और पॉलिटिक्स की चर्चा, तर्क-कुतर्क करने में बीत गया। आगे का रास्ता चाय पीते, रास्ते पूछते और माइलस्टोन देखते-समझते बीत गया। इस तरह करीब 11:30 बजे हम लोग अपने गंतब्य स्थान पहुंचकर गाड़ी से उतरते ही श्री मार्कंडेय जी का हृदय से प्रणाम किए।
मुख्य मंदिर के सामने नवीन जी के परिचित पुजारी श्री गुंजन गिरी जी हमारा इंतजार कर रहे थे। पारस और चंद्रभाल को वो दो गगरी देकर गंगा जी में स्नान करने के बाद खुद गंगा जल लाने के लिए बोल कर चले गए। क्योंकि अधिक मास(मलमास) का महीना होने के कारण पारस और चंद्रभाल को वहां रुद्राभिषेक भी कराना था।
मंदिर के ठीक सामने हम लोग गंगा जी में स्नान करके गंगाजल लेकर वापस आ गए। गंगा जी में स्नान करने का एक अलग ही आनंद मिला। घर वालों के कहने पर मैंने नहाने के बाद अब अपना पुराना कपड़ा वहीं छोड़ दिया। मुझे बताया गया था कि ऐसी वहां की परंपरा है।
बाद में पता चला कि जिन दंपति को पुत्र प्राप्ति हेतु यहां पर विधि विधान से विशेष पूजा करनी होती है सिर्फ वही इस प्रक्रिया का पालन करते हैं और उसके बाद ही मंदिर में प्रवेश करते हैं।
श्री मार्कंडेय महादेव जी की पूजा अर्चना
मंदिर पहुंचते हैं वहां साफ-सफाई शुरू हो गई क्योंकि वहां सभी देवी-देवताओं की आरती होने वाली थी। मुझे दोपहर के समय होने वाली इस आरती को देख कर थोड़ा अजीब सा लगा। क्योंकि सामान्यतः मंदिरों में सुबह और शाम ही आरती होती है।
पूछने पर पता चला कि हर रोज यहां सुबह 4:00 बजे, दोपहर 12:00 बजे और रात में 12:00 बजे आरती होने के बाद मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है। दोपहर की आरती के बाद भी 5 मिनट के लिए कपाट बंद कर दिया जाता है। भगवान शंकर के ज्योतिर्लिंगों में पूजा पाठ करवाने की जिम्मेदारी भृगु गोत्र के पंडितों को दी गई है।
आरती शुरू होते ही पुजारी श्री गुंजन गिरी जी अपने दो सहयोगियों के साथ पूजा की थाली लेकर हमें खचाखच भरी हुई भीड़ में से निकालते हुए एक-एक करके सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना और आरती कराने लगे। पारस और चंद्रभाल को छोड़कर हम तीनों वहां से निकल गए क्योंकि उन्हें रुद्राभिषेक करानी थी।
मंदिर में जहां भी देख रहा था ज्यादातर पति-पत्नियों के जोड़े ही नजर आ रहे थे। जैसे लग रहा था कि देश के कोने-कोने से युवा-अधेड़, हर तरह के दंपति यहां श्री मार्कंडेय महादेव जी के आशीर्वाद से अपनी परेशानियों के निवारण के लिए आ गए हों।
परिसर में हर जगह चारों ओर पुजारीयों द्वारा एक ही साथ कई दंपत्तियों का पुत्र प्राप्ति का विशेष अनुष्ठान हो रहा था। पीले धोती और पीली साड़ी में गाँठ जोड़े ढ़ेर सारे पति-पत्नियों के जोड़ों को एक साथ देख कर यहां का वातावरण कुछ अलग महसूस हो रहा था।
पुजारी श्री गुंजन गिरी जी
काफी भीड़ होने के कारण हम अच्छे से श्री मार्कंडेय महादेव जी का दर्शन, पूजा नहीं कर पाए थे जिसका पुजारी जी को बहुत मलाल हुआ। कुछ समय पश्चात जब हम लोग प्रसाद वगैरह खरीद कर लौटे तब वो हमें दोबारा मंदिर ले गए। वहां हम तीनों को उन्होंने बहुत ही शांति से, पूरा समय देकर महादेव जी का पूरे मंत्रोच्चार व विधि-विधान से पूजा करवाया।
सामान्य कद काठी के दुबले-पतले पुजारी श्री गुंजन गिरी जी हमें बहुत ही सरल स्वभाव के लगे। उनकी प्रशंसा करते हुए नवीन जी ने बताया कि वह बहुत सीधे-साधे, सामान्य, जमीन से जुड़े हुए इंसान हैं। शायद उनकी इसी सरलता, सहृदयता और हृदय की शुद्धता का ही प्रताप है कि बहुत सारे, न जाने कितने संतान रहित जोड़ों को पुत्र रत्न या संतान-प्राप्ति की ख्याति उन्हें मिली हुई है।
उनके कारण वहां दर्शन, पूजा-पाठ करने में हमें बहुत आसानी हुई। पता ही नहीं चला कि कब समय-समय पर पूजा के लिए सारा सामान उपलब्ध हो गया।
प्रसाद चढ़ाने का विधान
जब हम प्रसाद के लिए पेड़ा आदि खरीद रहे थे तो मिठाई की दुकान वाले ने बताया की यहां का विधान है कि मार्कंडेय महादेव जी को चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता। बल्कि चढ़ाने के लिए ली गयी प्रसाद से थोड़ा सा निकाल कर उनको अलग से चढ़ा दिया जाता है।
ये सुनकर मुझे कुछ अजीब सा नहीं लगा क्योंकि हर जगह का, हर मंदिर का अपना एक अलग विधि-विधान होता है। यहां प्रसाद के रूप में भभूत ग्रहण किया जाता है।
पेड़े का स्वाद काफी हद तक वाराणसी के संकट मोचन हनुमान मंदिर के घी से बने हुए शुद्ध पेड़े जैसा था। मंदिर में इस तरह की मिठाई और चाय की दुकानों सहित कुछ और भी जरूरी सामानों और सुविधाओं की व्यवस्था अब हो गई है जो पहले नहीं थी।
अन्य महत्वपूर्ण विधि-विधान और परम्परायें
शिवलिंग पर चंदन से राम नाम लिखे बेलपत्र, कमल के फूल और गंगा जल चढ़ाने का विशेष महत्व होता है। मंदिर के दरवाजे पर पुजारियों द्वारा चंदन से राम नाम लिखे बेलपत्र और एक लोटा गंगा जल आसानी से मिल जाता है। सावन के महीने में खिले हुए कमल के फूल भी लोग काफी श्रद्धा से चढ़ाते हैं।
भगवान शिव के वरदान के फलस्वरूप उनकी पूजा करने से पहले श्री मार्कंडेय जी की पूजा-अर्चना करना अनिवार्य होता है।
कुंडली के गुण दोष के आधार पर हर तरह के कष्ट के निवारण हेतु यहां पर गंगाजल, दूध, दूर्वा, गन्ने या गुड़ के रस से भगवान शंकर का रुद्राभिषेक किया जाता है।
महीने में 2 दिन त्रयोदशी के दिन श्री मार्कंडेय महादेव जी की पूजा अर्चना, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप या पुत्रेष्टि यज्ञ कराना काफी फलदायी होता है।
बाकी जगहों से अलग यहां 2 दिन महाशिवरात्रि मनाई जाती है और साथ में मेला भी लगता है। पहले दिन शादी की रस्म निभाने पुरुष मंदिर आते हैं जबकि दूसरे दिन विदाई की रस्म निभाने गाते बजाते हुए महिलाएं मंदिर से जाती हैं।
सावन के महीनों में यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी रहती है। लाखों कांवरिया कांवड़ लेकर श्री मार्कंडेय महादेव जी का दर्शन करने और गंगाजल लेने आते हैं। पूरे सावन भर यहां मेला लगा रहता है। इस कारण प्रशासन भी यहां की व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त बनाए रखता है।
सावन की हर सोमवार को यज्ञ, अनुष्ठान और जप-तप कराने के लिए यहां लोगों की इतनी भीड़ होती है कि आना-जाना मुश्किल होता है।
नवीन जी का अपने परिवार को वीडियो कॉल से दर्शन कराना
जब तक रुद्राभिषेक हुआ तब तक हम लोग इधर-उधर देवी देवताओं की पूजा अर्चना करके घूमते रहे। हालांकि उस समय एक कप अच्छी चाय की बहुत जोर से तलब लगी थी। पर पारस और चंद्रभाल के रुद्राभिषेक में व्यस्त होने के कारण उसे बाद में साथ पीने के लिए टालना पड़ा।
समय का सदुपयोग करते हुए नवीन जी ने वीडियो कॉल के द्वारा अपने परिवार के सभी सदस्यों को श्री मार्कंडेय महाराज जी के साथ साथ अन्य सभी देवी देवताओं का भी दर्शन करा दिया। उनके परिवार के लोग उनका दर्शन करके, आशीर्वाद लेकर खुश हो गए।
एक दोस्त के लिए यहां अनुष्ठान की बात करते-करते पुजारी श्री गुंजन गिरी जी ने पास की सीढ़ियों से होते हुए प्रथम तल पर बने हुए कई कमरे दिखाए। वहां दो पंडित कोई पाठ कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि जो श्रद्धालु दूर से आते हैं उनके ठहरने के लिए भी इन कमरों का उपयोग होता है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद श्रद्धालु गण(जनमानी) इन कमरों का निर्माण कराने, रखरखाव और सुविधा आदि बढ़ाने में अपनी क्षमता व श्रद्धा के अनुसार योगदान करते हैं। मंदिर परिसर के ठीक बाहर राज्य सरकार ने अभी हाल ही में एक रैन बसेरा बनवाया है।
वापसी की यात्रा
सुबह से उपवास रखने और चाय भी नहीं पीने के कारण सिर में दर्द हो रहा था। जोरों की भूख भी लगनी शुरू हो गई थी। इसलिए जैसे ही रुद्राभिषेक समाप्त हुआ हम सबने साथ में प्रसाद खा कर पानी पिया।
फिर पुजारी जी और उनके दोनों सहयोगियों की दान दक्षिणा करके उन्हें प्रणाम करने के बाद हम लोग खाना खाने निकल गए। लेकिन जाते-जाते भी हम लोग श्री मार्कंडेय महाराज जी को दोबारा प्रणाम करना नहीं भूले।
श्री मार्कंडेय महादेव गांव पर श्री मार्कंडेय महादेव जी की इतनी अनुकंपा है कई पुस्तों से उस गांव के लोग देश-विदेश, केंद्र व राज्य सरकारों में ऊंचे-ऊंचे पदों पर विराजमान हैं। इसलिए वहां के कई लोगों ने अपने घरों को या घर के कुछ भागों को गेस्ट हाउस के रूप में लोगों की सेवा-सुविधा के लिए परिवर्तित कर दिया है।
श्री मार्कंडेय महादेव गांव से बाहर निकलते ही मुख्य मार्ग पर बने हुए ढाबे पर हम लोग घर से बनवा कर लाए हुए खाने का स्वाद लिया। दोस्तों के साथ घर के बने हुए खाने के स्वाद का एक अलग ही आनंद होता है। ऊपर से श्री मार्कंडेय जी महाराज के दर्शन की खुशी और संतुष्टि से हम लोग पूरी तरह तृप्त महसूस कर रहे थे।
शिष्टाचारवश हम लोग ढाबे की बनी चाय पीकर वापसी के लिए निकल पड़े। हालांकि पेट भरा हुआ था फिर भी मूंगफली खाते हुए और रास्ते में रुक कर चाय पीते हुए शाम के करीब 7:00 बजे घर पहुंच गए।
घर आकर पता चला कि हमारे जानने वाले कई लोगों और परिवार वालों पर भी श्री मार्कंडेय महादेव जी की कृपा बनी हुई है। पुत्र सुख से वंचित दंपतियों को वहां निश्चित रूप से एक बार जाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। महीने में सिर्फ एक ही दिन विशेष मुहूर्त पर विशेष पूजा-अनुष्ठान संपन्न की जाती है। इसलिए उसका ध्यान रख कर ही वहां जाने की योजना बनाईए।
मौका मिलते ही, आप भी श्री मार्कंडेय महादेव जी का दर्शन करके अपने आप को धन्य कर लीजिए। और अगर आप शिव भक्त हैं तो आपको कुछ कहने की जरुरत है ?
तो देर किस बात की यारा ?
मिलते हैं दोबारा !