"Param Pujya Baba Shri Neeb Karori Maharaj" written on brownish red coloured Shri Kainchi Dham gate with Saffron Flag at

नीम करोली बाबा कैंची धाम की यात्रा का मेरा दिव्य अनुभव

कैसे हो यारा?

हनुमान जी के अवतार कहे जाने वाले नीम करोली बाबा या कैंची धाम के बारे में कभी सुना है? अगर नहीं तो चलिए आप को उनके बारे में और मेरे साथ हुए अपने दिव्य अनुभव के बारे में बताते हैं। 

जो लोग मोबाइल के बारे में थोड़ा बहुत भी जानते हैं वो निश्चित रूप से ‘एप्पल’ और ‘फेसबुक’ के संस्थापक स्टीव जॉब्स और मार्क जकरबर्ग के बारे में  भी जरूर जानते होंगे। 

इन दोनों कंपनियों को विश्व की श्रेष्ठ कंपनियों के रूप में स्थापित करने में बाबा नीम करोली के आशीर्वाद और प्रेरणा की बहुत बड़ी भूमिका रही है। आपको ये जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि स्टीव जॉब्स कैंची धाम में कुछ दिन रहकर साधना भी की है। हालांकि स्टीव जॉब्स के कैंची धाम पहुंचने के कुछ ही महीने पहले महाराज जी ने 10 सितंबर 1973 को समाधि ले ली थी।  

जबकि मार्क जकरबर्ग अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजरते वक्त स्टीव जॉब्स के कहने पर वहां बाबा के आश्रम जाकर उनका आशीर्वाद लिया था।

दिल्ली की व्यावसायिक यात्रा से शुरुआत 

मैं करीब 1 साल के बाद दिल्ली में रजिस्टर्ड किए हुए अपने एक फर्म को सरेंडर करने के लिए सीए के पास गया था।  क्योंकि गंभीर रूप से तीसरी बार बीमार होने के बाद मैं अपने होम टाउन में सेटल होने की कोशिश कर रहा था। इस कारण मैं इस फर्म के द्वारा कोई भी लेन देन या व्यवसाय नहीं कर पाया था ।

काफी समय से जीएसटी रिटर्न दाखिल ना होने के कारण इस फर्म पर टैक्स और पेनाल्टी की काफी देनदारी थी। किसी तरह मैंने पैसे की भी व्यवस्था कर ली थी। लेकिन काफी व्यस्त होने के कारण सीए ने मुझे तीन-चार दिनों के बाद मिलने के लिए समय दिया।

इसलिए समय का सदुपयोग करते हुए नए व्यवसायिक मौकों की तलाश में मैं अपने दोस्त संतोष से मिलने रुद्रपुर जाने का प्लान कर लिया। संतोष वहां एक कंपनी में एचआर मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं जो कई ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए कल पुर्जे  बनाती है।

रुद्रपुर की यात्रा 

मैं तुरंत टिकट बुक कर के अगले दिन नैनीताल एक्सप्रेस से रुद्रपुर पहुंच गया। गपशप करते हुए बातों ही बातों में अगले दिन 19 सितंबर 2019 को नैनीताल और कैंची धाम जाने का प्लान बन गया जो वहां से क्रमशः 73 किमी0 और 90 किमी0 दूर है। 

संतोष अपने परिवार और दोस्तों के साथ नैनीताल कई बार जा चुके थे लेकिन कैंची धाम जाने का उनका संयोग अब तक नहीं बन सका था। जबकि मेरी तो दोनों जगह जाने और बाबा का आशीर्वाद लेने की दिली इच्छा थी। 

नैनीताल की यात्रा

अगले दिन हम लोग संतोष के एक परिचित ट्रैवल एजेंट की गाड़ी बुक करके यात्रा पर निकल गए। हमारे साथ उनकी पत्नी अमरावती, उनका दो वर्षीय बेटा और एक स्थानीय दोस्त अजय भी थे। उनसे बात करके पता चला कि वो लोग अक्सर अपने परिवार के साथ कहीं ना कहीं घूमने निकल जाया करते हैं।

कुछ न कुछ खाते हुए, गपशप करते हुए कब काठगोदाम से पहाड़ों की चढ़ाई शुरू हो गई, पता ही नहीं चला। उस समय ठंड का मौसम अभी शुरू नहीं हुआ था इसलिए सब ने हल्के-फुल्के कपड़े ही पहने थे। 

पर मैंने अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए अंदर एक हाफ इनर भी पहन लिया था क्योंकि ठंड मुझे कुछ ज्यादा ही लगती है। स्कूलिंग के  समय तो ठंड से बचने के लिए मैं इतने सारे कपड़े पहन लेता था कि लोग मुझे पहचान ही नहीं पाते थे। इसलिए ठंड के मौसम में मैं हमेशा सावधान रहता हूं।

रास्ते में कई जगह बादलों के झुंड हमसे टकराते रहे, रास्ता रोकते रहे और चिढ़ाते हुए वार्निंग भी देते रहे की वे कहीं भी, कभी भी बरश सकते हैं – संभल के रहना। आगे बढ़ते हुए मुझे अपने दोस्त चंद्रभाल की बहुत याद आई जिसे नैनीताल बहुत पसंद है। वह अपने परिवार के साथ वहां अक्सर जाता रहता है। अगर वह साथ में रहता तो शायद और भी मजा आता। 

रास्ते में रुक-रुक कर फोटो खींचते-खिंचवाते हुए, चाय पीते हुए, हम जल्दी ही नैनीताल पहुंच गए। शहर में पहुंचते ही उत्तराखंड के इकलौते चिड़ियाघर नैनीताल जू पर कुछ थोड़े बहुत लोग दिखाई दे रहे थे। नैना देवी मंदिर की ओर जाते वक्त एक रास्ता व्यूप्वाइंट के लिए भी जा रहा था लेकिन हमने उसे लौटते वक्त देखने का फैसला किया। 

On the way to Nanital, Santosh's wife and cab driver watching Santosh taking photo of his son while his friend is walking towards two cars. Meanwhile dark clouds are crossing the road.
Taking Photos on the way to Nainital

नैना देवी का दर्शन

नैना देवी के मंदिर पहुंचते ही सबसे पहले हमने अपने हाथ-पैर धोए और प्रसाद खरीद कर देवी मां व अन्य देवी- देवताओं का दर्शन किया, आशीर्वाद लिया।

ऐसी मान्यता है कि जब माता सती भगवान शिव के यज्ञ में ना बुलाने के अपमान के कारण कुपित होकर अपने पिता महाराजा दक्ष के द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। तब भगवान शिव करुण वेदना से भाव विह्वल होकर माता सती के जलते हुए शरीर को लेकर चारों दिशाओं में इधर-उधर भागने लगे। भागते समय माता सती के नैन(आंख) यहीं पर गिर पड़े और पास में ताल होने के कारण पूरे जगह का नाम नैनीताल पड़ गया। 

यही कारण है कि ये जगह हिंदू आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र है। नवरात्र में यहां माता के दर्शन हेतु दूर-दूर से लोगों की भारी भीड़ उमड़ी रहती है। उस समय यहां का वातावरण धर्म-कर्म, भक्ति-शक्ति और श्रद्धा भाव से परिपूर्ण हो जाता है। यहां आए हुए लोग मां की भक्ति में लीन होकर रात-रात भर जगतारे और भंडारे का आनंद उठाते हैं।

सभी देवी देवताओं का दर्शन करने के बाद कुछ देर तक हम लोग सुकून से वहीं बैठे रहे। सामने तीन तरफ पहाड़ियों से घरी हुई नैनी झील में इक्का-दुक्का लोग नौका विहार का आनंद ले रहे थे। हम में से किसी को भी नौका विहार करने का मन नहीं था क्योंकि ऑफ सीजन होने के कारण उसका किराया कुछ ज्यादा ही था। हमें आगे भी जाना था इसलिए समय की भी कमी थी। इसके साथ ही, मैं अगली बार अपने परिवार के साथ नौका विहार का आनंद उठाने का विचार कर रहा था। 

A man in sky blue shirt & black paint carrying a backpack taking selfie photo with his wife dressed in yellow suit carrying pooja thali, golden coloured handbag & her small kid in safron coloured Naina Devi mandir complex among many sitting & standing devotees in front of green decorative small plants.
Naina Devi Mandir, Nainital

मॉल रोड की चहलकदमी 

अब दोपहर का समय होने के कारण थोड़ी बहुत भूख भी लगनी शुरू हो गई। इसलिए हमने कैंची धाम जाने के पहले यहीं पर खाना खा लेना उचित समझा। पार्किंग में गाड़ी के पास  खड़े होकर हमने घर के बने हुए खाने का स्वाद लिया। 

पेट पूरा भर गया था इसलिए हम लोगों ने माल रोड पर पैदल ही चलते हुए चौराहे तक जाने का फैसला किया। ताकि वहां की दुकानों-लोगों को देखते-समझते और फोटो खींचते-खिंचवाते हुए आगे की यात्रा के लिए ब्रेक ले सकें।  

Wall Sculpture of two ladies singers in the middle, three male artists on the left & three on the right Performing Artists in traditional dresses with blue sky, mountains & Forest bacdrop.
Wall Sculpture on Mall Road

रास्ते में कुछ बच्चे और बच्चियां फुटबॉल और वॉलीबॉल की प्रैक्टिस कर रहे थे। मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा।  वैसे किसी को भी कोई भी खेल खेलते हुए देखना हमेशा मुझे अच्छा लगता है क्योंकि जब भी मैं खेलने के लिए मैदान में जाता था तो मेरी सारी चिंताएं दूर हो जाती थी।

One Basketball player standing with an orange Basketball in his hand, five sitting on the ground with an orange basketball & five sitting on benches in blue dresses & two red lined hoody jaickets discussing about the game before their practice.
Basketball players discussing about their game before the practice

कैंची धाम के लिए प्रस्थान 

फिर जैसे ही हम चौराहे के पास पहुंचे, बारिश शुरू हो गई। थोड़ी देर पहले ही न जाने कहां से आवारा बादल घूमते हुए इधर आ गए थे। 

कहीं रास्ते में लिपटकर हमें वार्निंग देने वाले बादल तो हमारा पीछा करते हुए यहां तक नहीं आ पहुंचे थे? 

पर गनीमत ये हुआ कि कुछ ही मिनटों में ड्राइवर अतीक गाड़ी लेकर आ गए। बिना देर किये हम कैंची धाम के लिए निकल गए जो नैनीताल से अल्मोड़ा वाले रास्ते पर केवल 17 किमी0 ही दूर था। रास्ते में कुछ लोग हाफ़ और कुछ फुल स्वेटर पहने हुए दिखे तब समझ में आया कि पहाड़ों में मौसम इतना मनमौजी क्यों होता है और हमें गर्म कपड़े साथ में क्यों रखने चाहिए।

कैंची धाम मंदिर 

करीब आधा रास्ता बारिश देखते हुए बीत गया। उसके बाद पहाड़ों, जंगलों, इक्का-दुक्का घरों-कस्बों और नई-पुरानी गाड़ियों के आगे-पीछे चलते हुए करीब 3:30 बजे कैंची धाम पहुंच गए। कुछ देर तरोताजा होने के बाद हम लोग मुख्य द्वार की सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए एक छोटे से नाले पर बने हुए पुल को पार करते हुए मंदिर पहुंचे। 

मंदिर परिसर में घुसते ही एक छोटे से कमरे में कुछ लोग भजन-कीर्तन गा रहे थे जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो  रखा था। यहां सिर्फ यही एक जगह थी जहां बस थोड़ी-बहुत आवाज़ सुनाई दे रही थी वरना हर जगह सिर्फ शांति ही शांति थी। पूरे मंदिर परिसर में फोटो खींचने और वीडियो लेने की मनाही थी।

Red & white coloured Shri Kainchi Dham Mandir complex, Ashram & bridge on a big Nala situated at the foothills of two hills. It was the favourite place of Pujya Baba Shree Neem Karoli Ji Maharaj during summers.
Param Pujya Shri Neem Karoli Ji Maharaj, Shri Kainchi Dham Mandir

आश्रम में बाहर से आए हुए भक्तों और श्रद्धालुओं के रुकने की भी व्यवस्था है। लेकिन अधिकतम तीन दिनों के लिए वहां सिर्फ वही लोग रुक सकते हैं जिन्हें किसी पुराने भक्त के सिफारिश पर पहले से बुक कराया गया हो।

श्री कैंची धाम के अलावा महाराज जी के समाधि स्थल वृंदावन में “श्री बाबा नीब करौरी आश्रम”, उनके जन्म स्थान अकबरपुर, दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, फर्रुखाबाद के नीब करौरी गांव, नैनीताल, शिमला, ऋषिकेश, गुजरात के वावनिया जहां बाबाजी 6-7 सालों तक साधना की सहित देश-विदेश में बाबा के 108 से ज्यादा आश्रम व मंदिर बने हुए हैं। 

अमेरिका के न्यू मैक्सिको के एक छोटे से कस्बे ताओस में “ताओस हनुमान मंदिर” तथा यूरोप में दक्षिणी जर्मनी के उल्म शहर में माता दुर्गामयी द्वारा बनवाया हुआ “श्री नीम करोली बाबा मंदिर” और “आश्रम वृंदावन” बहुत प्रसिद्ध हैं। 

बाबा के विदेशी भक्त 

बाबा को लोग सबसे ज्यादा नीम करोली बाबा, नीब करौरी बाबा या महाराज जी के नाम से बुलाते हैं। 1960 और 70 के दशक से ही विदेशी खासकर अमेरिका के लोग उन्हें सबसे ज्यादा मानते रहे हैं। 

क्योंकि महाराज जी के शिष्य बनकर अमेरिका लौटने के बाद राम दास(रिचर्ड अल्पर्ट) की लिखी पुस्तक “बी हियर नाउ” ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका में पैदा हुए “बेबी बूमर्स” और बाद में “हैप्पी मूवमेंट” को बहुत ही गहरे तरीके से प्रभावित किया।

बाबा के सुप्रसिद्ध भक्त गायक और अध्यापक भगवान दास, संगीतकार जय उत्तल, कृष्णा दास और ट्रीवर हॉल(राम प्रिया दास), अमेरिकन आध्यात्मिक शिक्षक मां जया सती भगवती, फिल्मेकर जॉन बुश, लेखक डेनियल गोलमैन, गूगल के लैरी ब्रिलियंटऔर उनकी पत्नी गिरिजा आदि हैं।

हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स तो एक किताब पर उनकी फोटो देख कर इतना प्रभावित हुई कि उन्होंने हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया। उनके द्वारा अभिनीत फिल्म “ईट, प्रे, लव” इसी आध्यात्मिक जीवन यात्रा को प्रतिबिंबित करती है।

स्टीव जॉब्स और मार्क जकरबर्ग के अलावा बाबा नीम करोली से प्रभावित होने वाले अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों में गूगल के सह संस्थापक लैरी पेज और इबे के सह संस्थापक भी लैरी ब्रिलियंट के साथ कैंची धाम आ चुके हैं। 

हनुमान जी का मुख्य मंदिर 

मुख्य मंदिर में स्थापित सफेद संगमरमर से बनी हुई हनुमान जी की सौम्य प्रतिमा अपने अभय मुद्रा से दर्शन करने वाले सभी भक्तों  को हर तरह के भय, निराशा, असमंजस और असंतुष्टि के भाव से दूर करके निर्भय, शांत, संतुष्ट, आशान्वित और प्रसन्नता का अनुभव करा रहे थे।

एक परिवार अपने छोटे से बच्चे के साथ दर्शन कर रहा था जबकि एक दंपत्ति शांति से आंख बंद करके बैठे हुए थे। मैं भी थोड़ी देर शांत होकर आँख बंद करके इन सकारात्मक भावों की उर्जा अपने अंदर समाहित करता रहा। थोड़ी देर बाद जब उठा तो बाकी लोग मंदिर के दूसरे हिस्से में जा चुके थे।  

मैं भी आगे बढ़कर मंदिर परिसर में बनी हुई सफेद रंग के घर में किनारे वाले कक्ष की ओर बढ़ गया। उसमें बाबा के प्रिय शिष्यों माता दुर्गामयी और बाबा राम दास के जीवन के बारे में फ्लेक्स बैनर पर जानकारी दी गई थी।

मेरी दिव्य अनुभूति 

उसके बगल वाले कक्ष के बाहर अहाते में बाबा नीम करोली की एक चौकी रखी हुई थी जिस पर गद्दा, चद्दर और तकिया बहुत ही सलीके से लगा हुआ था। बिस्तर पर बाबा का प्रसिद्ध कंबल भी मोड़कर रखा हुआ था जिसे वह हमेशा ओढ़े रहते थे। बिस्तर पर कुछ ताजे फूल भी चढ़ाए हुए थे। भविष्य की अनिश्चितताओं और परिस्थितियों के भंवर जाल में शुद्ध ह्रदय व पूरी श्रद्धा से मैंने स्वयं को बाबा के चरणों में समर्पित करते हुए बाबा की चौकी पर सर झुका दिया। 

A small kid walking towards black blancket covered Chowki of Baba Neem Karoli in the gallery of a white coloured building with L-shaped cream cloured doormat near the chowkiand three well framed photographs hanging on the wall.
Blanket covered Chowki of Baba Neem Karoli in the Gallery

जैसे ही मेरा सर बाबा की चौकी से सटा, ऐसे लगा मानो पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई। एक करंट गुजरने की अनुभूति हुई। ऐसे लगा जैसे मेरी सारी चिंता, दुविधा व अनिश्चितता न जाने कहां गायब हो गई। कैरियर को लेकर सारे असमंजस समाप्त हो गए। ऐसा महसूस हुआ कि बाबा आशीर्वाद देते हुए कह रहे हो, “क्यों चिंता करते हो?  सब ठीक हो जाएगा! जो करना चाह रहे हो उसमें आगे बढ़ो!”  

बाबा के कहे हुए शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे। कुछ देर के बाद दोबारा अपना सर उनकी चौकी से सटाया पर वैसी अनुभूति नहीं हुई। फिर भी कुछ देर तक बाबा की चौकी से माथा सटाए रखा। मन कर रहा था कि ऐसे ही बाबा के चरणों में पड़ा रहूँ। मगर बाकी लोगों का ख्याल आते ही बाबा को फिर प्रणाम करते हुए उनकी ओर बढ़ चला। 

उबले चने का प्रसाद खाने के बाद थोड़ी देर तक भजन कीर्तन गाते हुए भक्तों व श्रद्धालुओं का हम लोग भी साथ देते,  ताली बजाते हुए भक्ति भाव में बार-बार डुबकी लगाते रहे। वहां से जाने का मन तो नहीं कर रहा था पर कभी तो वापस लौटना ही पड़ता। 

वापसी की आश्चर्यजनक घटना 

मंदिर से बाहर निकलते ही हम लोग नींबू-नमक चाटने के बाद वापसी के लिए चल पड़े ताकि रास्ते में उल्टी की संभावना कम हो।अब ठंड भी लगनी शुरू हो गई थी। लेकिन निकलने से पहले अपने परिवार के लोगों और दोस्तों के लिए बाबा के फोटो वाली मालाएँ और सजाने वाली कुछ चीजें खरीदना नहीं भूले।

अंधेरा होते-होते हम लोग संतुष्टि का भाव लिए सोते-जागते-ऊंघते रुद्रपुर वापस आ गए।

रास्ते में एक आश्चर्यजनक घटना हुई। मैंने अपने सीए से अपॉइंटमेंट लेने के लिए फोन किया ताकि जीएसटी सरेंडर कर सकूँ। फोन करने पर उसने बताया कि उसके पार्टनर ने यह काम पहले ही कर दिया है। मुझे ये बात सुनाई तो दी पर मोबाइल का नेटवर्क अच्छा नहीं होने के कारण मुझे विश्वास नहीं हुआ। मुझे लगा खराब नेटवर्क के कारण मैं कुछ गलत सुन गया, समझ गया। फिर भी ये सुनकर मेरे अंदर एक अलग ही उत्तेजना महसूस हुई और मेरा एड्रीनलीन अचानक बढ़ गया। मुझे पूरा विश्वास था कि ये चमत्कार बाबा के आशीर्वाद कारण ही संभव हुआ है। उस समय मेरे ऊपर टैक्स की देनदारी बहुत ज्यादा नहीं थी। लेकिन उस समय थोड़े से पैसे की व्यवस्था करना भी मेरे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी। 

बाबा के इस आशीर्वाद से मेरी उनमें श्रद्धा और भी बढ़ गई।

दिल्ली जाने के बाद मुझे सीए को सिर्फ प्रोफेशनल चार्ज ही देने पड़े क्योंकि किसी नियम कानून के कारण टैक्स और पेनाल्टी दिए बिना ही फर्म की जीएसटी सरेंडर हो गई थी। 

बचपन में मै हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त था। लेकिन हनुमान जी के अद्वितीय भक्त बाबा नीम करोली के साथ मेरा ये अनुभव कभी न भूलने वाला अनुभव है। ऐसा चमत्कार बहुतों के साथ हुआ है। यही कारण है कि लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते हैं। 

उनके ऐसे ही एक चमत्कार के कारण फर्रुखाबाद रेलवे स्टेशन से 19 किमी0 दूर नीब करौरी नाम से एक रेलवे स्टेशन भी बनाया गया है। दिल्ली आते-जाते वक्त हमने कई बार इसके अलग तरह के नाम के बारे में सोचा लेकिन इसके बारे में मुझे अब पता चला। 

15 जून को स्थापना दिवस का आयोजन

मैं निश्चित रूप से कैंची धाम जा कर बाबा का बार-बार आशीर्वाद लेना चाहूँगा। हनुमान जी के भक्तों को तो वहां एक बार जरूर जाना चाहिए। मंदिर के स्थापना दिवस पर 15 जून को वहां हर साल एक बहुत बड़ा आयोजन होता है। उस समय वहां रात-रात भर दूर से आए हुए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रहती है। भंडारे में तो एक लाख से ज्यादा लोग बाबा का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

कैंची धाम एक छोटा-सा कस्बा होने के कारण उस समय वहां दूर-दूर तक गाड़ियों की लाइन लगी रहती है। जाम और पार्किंग की समस्या से निपटने के लिए प्रशासन की विशेष व्यवस्था होती है। 

भोवाली में ठहरने की सुविधा

भक्तों और श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने के कारण नैनीताल के अलावा कैंची धाम से 9 किमी0 पहले भोवाली में होटल, गेस्ट हाउस आदि की अच्छी सुविधा है। दूर से आए हुए श्रद्धालुओं के लिए इस तरह की सुविधा कुछ हद तक ठीक है। 

डर है कि भविष्य में कैंची धाम जैसी जगह भी अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों की तरह कहीं ओवर कामर्शियलाइज ना हो जाए। अगर ऐसा होता है तो इस जगह का प्राकृतिक सौंदर्य, शांति और सौम्यता कहीं समाप्त ना हो जाए।

तो यारा, बाबा नीम करोली के बारे में जानकर आपको कैसा लगा? मुझे ज़रुर बताइए। 

कैंची धाम के मेरे इस अनुभव से आपको भी प्रेरणा मिली होगी और आप महाराज जी का दर्शन करना चाहेंगे।

वहां जाने की योजना निश्चित रूप से बनाइए। मुझे विश्वास है कि आपको भी बाबा का आशीर्वाद मिलेगा और आपकी किसी-न-किसी परेशानी का हल ज़रुर निकलेगा। 

लेकिन उसके लिए आपको घर से निकलना पड़ेगा।

तो देर किस बात कि यारा ?

मिलते हैं दोबारा !

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